क्या कोरोना के चलते अन्य बीमारियां लुप्त हो गईं

क्या कोरोना के चलते अन्य बीमारियां लुप्त हो गईं



 कोरोना के चलते सोशल मीडिया में लोग तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं जिसमें सड़कों पर नीलगाय और हिरण विचरण कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि प्रदुषण में भारी कमी आयी है। लेकिन इसके दूसरे पक्ष के ऊपर भी विचार कीजिये। अस्पतालों में OPD बंद है, इसके बावजूद इमरजेंसी में भीड़ नहीं है। तो बीमारियों में इतनी कमी कैसे आ गयी? माना कि सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही हैं इसलिए सड़क दुर्घटना नहीं हो रही है। 

परन्तु क्या हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज या हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं भी नहीं आ रही हैं। ऐसा कैसे हो गया की कहीं से कोई शिकायत नहीं आ रही है या किसी का इलाज नहीं हो रहा है? 

दिल्ली के निगमबोध घाट पर प्रतिदिन आने वाले शवों की संख्या में २४ प्रतिशत की कमी आयी है। बनारस के हरिश्चनद्र घाट पर औसतन प्रतिदिन 80 से 100 शव आते थे आज करोना के माहौल मे प्रतिदिन 20 या 25 डेड बॉडी आ रही हैं।

 इसी तरह मणिकरणिका पर भी यही हालात हैं। वहॉ के डोम राज परिवार से पूछने पर वो भी आश्चर्य चकित होते हुए बताते है की ये सन्धी मौसम है (जाड़े से गर्मी मे जाना) इस समय हर साल डेड बॉडी मे बढोत्तरी होती है परन्तु पता नही क्यों इस बार भारी कमी है । जबकी केवल B H U से प्रतिदिन10 से 15 शव आते थे, वो एक दम बन्द हैं। 


अभी अधिकतर अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं। 

 बहुत सारी समस्याएं डॉक्टरों के कारण भी है। इसके अलावा लोग घर का खाना खा रहे हैं, रेस्तराओं का नहीं। इससे भी फर्क पड़ता है। लोगों को पीने का पानी शुद्ध मिले तो आधी बीमारियां ऐसे ही खत्म हो जाएंगी। 


कनाडा में लगभग ४-५ दशक पूर्व एक सर्वेक्षण हुआ था। वहां लम्बी अवधि के लिए डॉक्टरों की हड़ताल हुई थी। सर्वेक्षण में पाया गया कि इस दौरान मृत्यु दर में कमी आ गयी थी। स्वास्थ्य हमारी जीवनशैली का हिस्सा है जो केवल डॉक्टरों पर निर्भर नहीं है।

हिन्द स्वराज में लिखा है कि डॉक्टर कभी नहीं चाहेंगे की लोग स्वस्थ रहें। वकील कभी नहीं चाहेंगे कि आपसी कलह खत्म हो। जो भी हो, लॉकडाउन से परेशानियां हैं जो अपरिहार्य हैं लेकिन इसने कुछ ज्ञानवर्धक एवं दिलचस्प अनुभव भी दिए हैं।


और एक बड़ा प्रश्न चिन्ह जो डॉक्टर्स की ईमानदारी पर लग रहा है, लेकिन इस महामारी के चलते और उनकी योगदान को देख कर उन पर आरोप लगाने का मन नहीं है.