संपादकीय - दर्द की दास्तान लिख रही हैं राहें

दर्द की दास्तान लिख रही हैं राहें


 


राहें दर्द भरी दास्तान लिख रही हैं.... दास्तान इंसानियत को शर्मसार करने वाली .. हुकूमत की लापरवाही और अनदेखी की दास्तान... राहें अपने जिस्म पर लिख रही हैं मासूम भूखे बच्चों की आंख से गिरते आंसुओं की दास्तान, ... दास्तान उन मुसाफिरों के पैरों की थकन की और उनके पैरों से रिसते छालों की ।........ दास्तान उन मुसाफिरों की है जो दिल्ली या अन्य महानगरों से निकलकर पैदल चल पड़े हैं अपने घरों की तरफ़, खुद को भूख और महामारी से महफूज़ करने के डर से । वे भूखे चले जा रहे हैं... रास्ते में कहीं कोई मसीहा बनकर उनकी भूख मिटा देता है...कहीं स्थानीय प्रशासन भोजन मुहैया करा देता है। सोशल मीडिया पर मौजूद वीडियो जो हमारे ही देशवासियों की मजबूरी बयान करते हैं . .. उन के हालत देख कर बहुत अफसोस होता है । राहें लिख रही हैं उन मज़दूरों के सिरों पर पोटली में बंधी गृहस्थी या कंधों पर टंगे बेगों में भरी हुई चिंताओं की दास्तान । राहें लिख रही हैं बूढ़ी- जवान औरतों के धूप में जलते हुए पैरों के छालों की दास्तान..... राहें लिख रही हैं नन्हे- नन्हे बच्चों के नन्हे- नन्हे कदमों से तय होती दूरियों का दर्द ।.... राहें लिख रही हैं सरकार के बिन सोचे समझे लॉकडाउन के नतीजे का अफसाना...राहें लिख रही है घर में बैठे राष्ट्रवादी नेताओं का गरीब जनता से किया जा रहा उपेक्षित व्यवहार... राहें लिख रही हैं कि जब विदेशों में फंसे अमीर भारतीयों को विमान उपलब्ध करवाकर देश में लाया जा सकता है तो गरीब व्यक्ति को अपने ही देश में उसके घर तक क्यों नहीं पहुंचा जा सकता। 


लगता है - बेजान राहों में जान आ गई है... उनमें दिल पैदा हो गया है, इंसान को बेबस देखकर क्योंकि यकीनन ये इस सदी का सबसे बड़ा और भयानक दर्द है और इसलिए मुल्क की राहें मजबूर हैं उस दर्द को लिखने के लिए।


...... राहें जो लिख रही हैं उन दास्तानों को हुकूमत की आंखें नहीं पढ़ पा रही हैं... और जो लोग पढ़ पा रहे हैं वह घरों से निकलकर उनकी मदद को आ रहे हैं लेकिन उनकी तादाद मुट्ठी भर है जबकि राहों पर मुसाफिरों का सैलाब है। 


पता नहीं इन मुसाफिरों में से कितने अपनी मंजिल को पाएंगे और कितने मंजिल से पहले ही गुमशुदा हो जाएंगेएक क़िस्सा जो इसी दौरान गुज़रा दिल को देहला देता है - एक 14 बरस की बच्ची जो अपने एक दोस्त पर भरोसा कर उसके साथ पैदल अपने घर के लिए निकली मगर, रास्ते में दोस्ती को शर्मसार करती इस घटना ने दोस्ती को कलंकित ही कर दिया उसने और उसके कुछ दोस्तों ने मिलकर उस लड़की के दामन को तार तार कर दिया . ये दास्तान क्या दिल पर आघात नहीं करती? क्या प्रशासन को इन सब बातों को अनदेखा कर देना चाहिए? इन्ही सवालों के साथ आईये ईश्वर से दुआ करें के ये सारे मुसाफिर जो हमारे हमवतन हैं उन्हें उनकी मंज़िल नसीब हो।