कोरोना के ज़रिए चीन का आर्थिक युद्ध!

कोरोना के ज़रिए चीन का आर्थिक  युद्ध 


क्या कोरोना के ज़रिए चीन ने विश्व स्तर पर एक आर्थिक युद्ध छेड़ दिया है? यह प्रश्न वुहान से पूरी दुनिया में फैली इस महामारी के बाद तेजी से लोगों के मस्तिष्क में उठ रहा है। क्योंकि पिछले तीन महीनों की कोरोना दास्तान का अगर विश्लेषण करें तो यह तथ्य बहुत मजबूती के साथ उभर कर सामने आ रहा है।


याद कीजिए कि चीन के वुहान शहर में इस महामारी के फैलने के बाद पूरे इलाके को दो महीने तक लाकडाऊन कर दिया गया था। कहा गया कि इस दौरान तीन हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। यह भी बताया गया था कि चीन ने मात्र सात दिनों में दस हजार बिस्तर वाला अस्पताल तैयार कर युद्ध स्तर पर इस महामारी से जंग लड़ी थी। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि ये महामारी वुहान से चीन के किसी शहर तक नहीं पहुंची और चीन के अन्य शहरों में जनजीवन सामान्य ही बना रहा। तो फिर यह महामारी वुहान से हजारों किलोमीटर दूर स्थित अन्य देशों में कैसे पहुंच जाती है ? यह भी आश्चर्य की बात है कि इस बीमारी से चीन के मित्र देश या तो पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं या आंशिक रूप से प्रभावित होते हैं। ऐसा क्यों हुआ, इस प्रश्न का उत्तर अभी तक किसी के पास नहीं है। अगर इसका कोई उत्तर है तो सिर्फ चीन के पास है जो पूरी तरह खामोशी इख़्तियार किए हुए है।


मात खाकर मात देने की रणनीति

 

गौरतलब है कि चीन में कोरोना के चलते दो महीने पूर्व चीनी मुद्रा का अवमूल्यन हो गया था लेकिन चीन ने उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। वुहान से निपटने के बाद जैसे ही कोरोना यूरोप-अमेरिका सहित विश्व के अन्य देशों में फैला, वहां की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। खासतौर पर यूरोप और अमेरिका की चीन में स्थित कंपनियों की हालत खस्ता होने लगी और उनके शेयर गिरने लगे। तब अचानक चीन उन कंपनियों के शेयर 30% से भी कम कीमत खरीद लेता है और उनका मालिक बन बैठता है। तब कुछ लोगों की आंखें खुलती हैं और समझ में आता है कि अब चीन, अमेरिका और यूरोप में इन्हीं एक्सचेंजों और अपनी पूंजी द्वारा यह तय करेगा कि बाजार का रुख कैसा होगा। अब  वह कीमतों का निर्धारण करने में भी सक्षम होगा। अर्थात अब ये बाजार चीन की मर्जी से चलेंगे। क्योंकि चीन 1.18 ट्रिलियन होल्डिंग वाले जापान के बाद अमेरिकी ख़जाने का सबसे बड़ा मालिक है।

चीन की इसी बड़ी मात से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप झुंझलाए हुए हैं, बल्कि यूं कहें कि वे बहुत गुस्से में हैं। उनकी ये झुंझलाहट और गुस्सा उनकी कुछ प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट दिखाई पड़ा है जब उन्होंने कोरोना वायरस को बार-बार चीनी वायरस कहा है। लेकिन ट्रंप अपने अहंकार के चलते इस बात को खुलकर स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि चीन ने आर्थिक मोर्चे पर उन्हें एक बड़ी मात दे दी है। अपने इसी अंहकार की वजह से वे अमेरिका में लाकडाऊन भी नहीं करना चाहते जबकि वहां कोरोना संक्रमित सबसे अधिक हो चुके हैं। वैसे ये बात भी सच है कि अगर अमेरिका लाकडाऊन करता है तो उसको बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा और उधर चीन अधिक सशक्त हो जायेगा।अति आत्मविश्वास भारी पड़ ट्रंप को! 

 

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अब अपने अति आत्मविश्वास की कीमत चुकाना पड़ रही है। क्योंकि जब कोरोना चीन में अपनी दस्तक दे चुका था, तब वे बिल्कुल बेफिक्र थे। उन्हें अपनी श्रेष्ठ चिकित्सा व्यवस्था का अहंकार था। उन्हें लगा था कि कोरोना उनके देशवासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा। उनकी इसी बेफिक्री का नतीजा है कि आज अमेरिका कोरोना का नया एपिक सेंटर बन चुका है।

यह बात तो जग जाहिर है कि ट्रंप न सिर्फ अंहकारी हैं बल्कि इसके साथ वे हद दर्जे के जिद्द भी हैं। चीन भी उनकी इस कमजोरी के बारे में बखूबी जानता है और शायद इसलिए वो खामोश है। क्योंकि जो कुछ ट्रंप कर रहे हैं वो चीन के मनमुताबिक ही है। ऐसे में आगामी 2-3 महीने में अगर अमेरिका कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पाता है तो चीन की योजना अनुसार वहां की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा जायेगी। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के ढहते ही विश्व की आर्थिक व्यवस्था चीन की मनमर्ज़ी से नियंत्रित होगी।

कुल मिलाकर चीन ने कोरोना के जरिये जो खेल खेला है, उससे यह साबित हो गया है कि किसी भी देश की सैन्य शक्ति के कोई मायने नहीं हैं क्योंकि अब देशों को फौज के जरिए नहीं बल्कि शेयर मार्केट के द्वारा जीता जाना जरूरी हो गया है।