संपादकीय-नफरत की राजनीति से मज़बूत हो रहा है देश का लोकतंत्र!


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नफरत की राजनीति से मज़बूत हो रहा है देश का लोकतंत्र! 


आपको याद होगा


केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का वो सबसे विवादित बयान-"देश के गद्दारों को,गोली मारो..."। आपको ये भी याद होगा कि इस खतरनाक बयान पर भाजपा के किसी भी वरिष्ठ नेता जिसमें खुद प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल थे, निंदा तक नहीं की थी। यही नहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने दिल्ली के भाषणों में शाहीन बाग के प्रदर्शनकरियों को पाकिस्तानी और बिरयानी छाप कह-कह कर कई बार उनका अपमान किया था। यह बयान अधिकांश मतदाताओं को बेहद आपत्तिजनक लगा क्योंकि उस प्रदर्शन में सिर्फ मुसलमान नहीं बल्कि सारे धर्मों को मानने वाले शामिल हो रहे हैं। 


गृहमंत्री अमित शाह का वो बयान भी आपको याद होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि बटन इतनी जोर से दबाना कि उसका करंट शाहीन बाग को लगे। देश के प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान भी आपकी याददाश्त में होगा जब उन्होंने दिल्ली के भाषण में कहा था कि शाहीन बाग का प्रदर्शन एक संयोग है या प्रयोग। आपको भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के भी कई जहरीले बयान याद होंगे। 


आपको इन सब बयानों की याद दिलाने का मकसद है कि भाजपा नेताओं ने इस चुनाव में जिस कदर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया,वैसी भाषा आजतक किसी भी राजनैतिक दल द्वारा नहीं बोली गई। अगर भाजपा इस असंसदीय भाषा के जरिए दिल्ली का चुनाव जीत जाती तो वो इस भाषा को अपनी पार्टी की संसदीय भाषा घोषित कर देती। उसके बाद भाषा को लेकर दर्ज करवाये जाने वाली हर आपत्ति को खारिज कर दिया जाता,जो लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक साबित होता। दिल्ली के मतदाता वास्तव में बधाई के पात्र हैं जिन्होंने देश की राजनीति को भाषा के रूप में नग्न होकर नाचने की अनुमति नहीं दी। 


इसके साथ ही उन्होंने भाजपा को स्पष्ट संदेश पंहुचा दिया है कि लोगों को धर्म और जाति में बांटने की राजनीति का कोई भविष्य नहीं है। लोगों ने मोदी जी को ये संदेश भी दे दिया है कि सिर्फ अपने मन की बात करने से बेहतर है कि वो उनके मन की बात भी सुनें। इसके अलावा बांटने की राजनीति के बजाय जोड़ने की राजनीति पर ध्यान दें।


याद रखिए कि CAA लागू करने के बाद ये पहला चुनाव था जिसे भाजपा इस कानून से जोड़कर देख रही थी और उसे उम्मीद थी कि इस मुद्दे पर बहुसंख्यक समाज पूरी तरह उसके साथ आ जायेगा। लेकिन मतदाता ने अपनी परिपक्वता का परिचय दिया और भाजपा को अपना अस्तित्व दिखा दिया। अब निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी को CAA के संबंध में चिंता होना लाज़मी है।


क्योंकि अगर पूरी मोदी सरकार, 7 राज्यों के मुख्यमंत्री और 200 सांसद मिलकर भी दिल्ली जैसे छोटे राज्य में पार्टी को जीत नहीं दिलवा सकते तो कोई भी इस बात का अंदाजा आसानी से लगा सकता है कि भाजपा का जनाधार किस तेजी से खोता जा रहा है। हां, मगर खुशी की बात यह है कि इस नफरत की राजनीति के बहाने ही सही, भारतीय लोकतंत्र अधिक मजबूत हो रहा है।