लोकतंत्र बचाने की मुहिम में-
देश की शान बन गया है शाहीन बाग
-कुछ दिनों पहले शाहीन बाग़ का नाम शाहीन बाग़ से कुछ किलो मीटर दूर रहने वाला भी नहीं जानता था लेकिन आज यही नाम चर्चा का विषय बना हुआ है देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ये नाम गूँज रहा है।दिल्ली का शाहीन बाग़ आज देश की एकजुटता का प्रतीक बन गया है।शाहीन बाग़ से निकल रहे इंकलाबी नारों की आवाज़ पूरे देश में गूँज रही है।नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ शाहीन बाग में भीषण ठण्ड रातों में महिलाएं, बच्चे और बूढ़े जवान सड़क पर खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठे हैं।महीने भर से ज़्यादा से चल रहे आंदोलन की चिंगारी पूरे देश में फैल चुकी है।हर शहर हर गली अब ख़ुद को शाहीन बाग़ बनाने की तर्ज़ पर है।
15 दिसंबर से चल रहे इस आंदोलन को सरकार ना रोक पाइ ना हार मानने को तैयार है।बल्कि ये कहना ग़लत नहीं होगा की शायद ये देशव्यापी जंग सरकारी अहंकार के कारण रुकने का नाम नहीं ले रही।जेएनयू,एएमयू जैसी संस्थाओं से शुरू हुआ ये आंदोलन दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है,प्रतेक समुदाय,धर्म,जातियों के लोग इस आंदोलन का हिस्सा बनते जा रहे हैं।शाहीन बाग़ में चल रहे आंदोलन में कश्मीरी पंडितों ने आकर आंदोलन का समर्थन किया,हिंदू धर्म गुरुओं,साधु संत,तथा सिख समुदाए के लोगों द्वारा भी प्रबलता के साथ समर्थन किया जा रहा है।अनेक धर्मों द्वारा प्रदर्शनकारियों के लिए लंगर लगाए जाते हैं।ये सब इस लड़ाई को धार्मिक नहीं बल्कि संविधान के ख़ातिर लड़ी जा रही लड़ाई साबित करने के लिए बहुत हैं।
इसी सब घमासान के बीच भाजपा के कुछ महानुभावों द्वारा खिल्ली उड़ाते हुए शाहीन बाग़ में आंदोलन कर रही महिलाओं को किराए पर की कहा गया जिसका जवाब शाहीन बाग़ की औरतों के साथ साथ पूरे देश ने दिया।शाहीन बाग़ की औरतों ने मीडिया से बात के दौरान कहा कि वो भाजपा की रैलियों में बुलाए गए किराय के लोग नहीं हैं वो क्रांतकारी हैं।पुलिस की लाठियों से तो दूर वो मौत से भी नहीं डरती,आंदोलन जारी रहेगा।अगर उन्हें ज़िद है अपने फ़ैसले पर अड़े रहने की तो हमारी भी ज़िद है संविधान बचाने की। इसी कड़ी में 29 दिसम्बर को भारत बंद का आग़ाज़ भी हो गया है।
जीत जब ज़िद बन जाए तो जंग आसान हो जाती है।ऐसी ही ज़िद भारत की आज़ादी से पहले कुछ वीर मतवालों के सर पर सवार थी।आज इतिहास दोहराया जा रहा है।देश के कोने कोने में देश के लाखों बहदुर बेटे,बेटियाँ संविधान बचाने की जंग लड़ रहे हैं।जनवरी की सर्द हवाएँ जिनका जज़्बा नहीं तोड़ पा रहीं।काम धाम,घर बार सब छोड़ कर,जाति,धर्म की बेड़ियाँ तोड़ कर वो निकल पड़े हैं क्रूर की क्रूरता से लड़ने,घमंडी के घमंड से लड़ने हर उस ग़लत से लड़ने जो देश के सही होने में बाधा बाने।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) आज अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है जिसका विरोध पूरे विश्व में हो रहा है।महीनों से लाखों की संख्या में लोग पुलिस की लाठियाँ,झूँटे केस की परवाह किए बिना इस क़ानून का विरोध कर रहे हैं। इस सब को दरकिनार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला सुनाया है वो अविश्वाशनीय है।लेकिन नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) लागू रखने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से तो जनता का एक अलग ही रूख देखने को मिल रहा है।जहाँ ऐसे फ़ैसले से निराष होना चाहिए वहाँ जनता के अंदर निष्क्रियता उत्पन्न हो गयी है।कल तक जो विरोध था आज उसने क्रांति का रूप धारण कर लिया है।हर शहर हर गली में शहीन बाग़ पैदा होता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले अमित शाह जी ने सीएए,एनआरसी को ना हटाने का जो आत्मविश्वासीय बयान दिया था उससे जनता के मन में ये सवाल भी खटक रहा है की क्या न्याय पालिका केंद्र सरकार के मन माफ़िक़ काम कर रही है?
वहीं जनता के सवालों से बच रही केंद्र सरकार देश के अहेम मुद्दों जैसे जीडीपी,बेरोज़गारी,विकास,भ्रष्टाचार आदि को ताक पर रख के इस मुद्दे में उलझी हुई है जिसके विरोध में सम्पूर्ण देश खड़ा है।तो क्या इससे ये समझा जाए की सरकार बनाम देश ?
और अब तो सरकार को पता चल चुका है कि हवा का रुख़ किस तरफ है.