मोदी का राष्ट्रवाद फेल,केजरीवाल का विकास पास !
नफरत की भाषा को मतदाता ने नकारा,
पाकिस्तान,हिन्दू-मुसलमान, शाहीन बाग रहे प्रभावहीन!
आखिरकार दिल्ली के दिल ने जाहिर कर दिया कि उसे कौन पसंद है और तीसरी बार अरविन्द केजरीवाल को मुख्यमंत्री चुनकर विकास की राजनीति पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी। यह वो चुनाव था जो भाजपा के लिए अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था। इसी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने की कोशिशों में भाजपा ने दिल्ली चुनाव में अपने 7 मुख्यमंत्रियों, 200 सांसदों और सभी मंत्रियों के साथ स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया लेकिन जनता ने बहुत आसानी से उस आक्रमण को नाकाम कर दिया। निश्चित रूप से लोकतंत्र की यही खूबसूरती भारत को सारी दुनिया में सबसे अलग बनाती है।
दिल्ली का यह चुनाव इस मायने में महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें एक तरफ विकास का मुद्दा था तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व। भाजपा ने अपने इन दोनों मुद्दों के जरिए मतदाताओं के बीच अपने जहरीले भाषाओं से मतों के धुर्वीकरण का प्रयास किया, वो आश्चर्यजनक रूप से असफल हो गया। इस चुनाव में दिल्ली का शाहीन बाग भी एक बहुत बड़ा मुद्दा था। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने तो इस मुद्इ पर लोगों से ये अपील कर दी थी कि EVM का बटन इतनी जोर से दबाना कि उसका करंट शाहीन बाग को लगे। लेकिन मतदाता ने उल्टा अमल कर दिया और भाजपा मुख्यालय तक करंट पहुंचा दिया। इस चुनाव में लोगों ने यह भी देखा कि देश के इतिहास में पहली बार देश गृहमंत्री ने स्वयं दिल्ली की गलियों में घूम घूम कर पर्चे बांटे और उसका जनता पर कोई असर नहीं हुआ। वास्तव में भाजपा के लिए ये हास्यास्पद स्थिति रही।
दरअसल भाजपा ने राज्यों में हो रही अपनी लगातार हार पर विराम लगाने की कोशिशों में जो राह अपनाई, उसे कोई भी सभ्य समाज कतई स्वीकार नहीं कर सकता था। भाजपा नेताओं ने बहुसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया,उसने बहुसंख्यकों को आकर्षित करने के बजाय भयभीत कर दिया। बहुसंख्यकों को लगा कि जब सत्ता में नहीं होने पर भाजपा इतनी आक्रामक हो सकती है तो सत्ता आने के बाद तो वो मनमर्जी करेगी और जनता को गुलामों से अधिक नहीं समझेगी। इसी आशंका के चलते आम मतदाता ने आप पार्टी पर भरोसा जताया।
दिल्ली चुनाव से सबसे बड़ा एक निष्कर्ष यह भी निकला है कि धीरे धीरे मोदी का राष्ट्रवाद, विकास के मुद्दे पर कमजोर साबित होने लगा है। लोगों को लग रहा है कि भाजपा ने अबतक राष्ट्रवाद के नाम पर सिर्फ उनका भावनात्मक शोषण किया है। क्योंकि मोदी और उनकी सरकार ने विकास और रोजगार के क्षेत्र में अबतककुछ नहीं किया है।
कुल मिलाकर दिल्ली चुनाव से बड़ी खबर ये निकलकर आई है कि अब लोग राष्ट्रवाद, हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान,शाहीन बाग जैसे शब्दों का सियासी मतलब पूरी
तरह समझ चुके हैं और वे विकास को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता में रखते हैं। ऐसे में विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को स्वयं का फिर से विश्लेषण करने की आवश्यकता है।